
भोपाल।
मध्यप्रदेश के लाखों शिक्षित युवा आज उस मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ भविष्य धुंधला दिखता है और सपने बार-बार टूटते हैं। वर्षों की मेहनत, परीक्षा की तैयारी, डिग्रियों की गाढ़ी कमाई और माँ-बाप की उम्मीदें — सब कुछ दांव पर लग चुका है। बावजूद इसके, नौकरी की तलाश खत्म नहीं हो रही।
प्रदेश सरकार ने चुनावी घोषणाओं में लाखों नौकरियों का वादा किया था। रोजगार को लेकर बड़े-बड़े आयोजन हुए, पोर्टल बने, विज्ञापन निकले, लेकिन ज़मीन पर हालात जस के तस हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो मध्यप्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 30 लाख से भी ऊपर पहुंच चुकी है, जो राज्य की युवा आबादी के लिए एक गंभीर संकेत है।
रोजगार कार्यालयों में रोज़ हज़ारों युवा कतारों में खड़े मिलते हैं, लेकिन काम के नाम पर उन्हें सिर्फ इंतज़ार मिलता है। मध्यप्रदेश रोजगार पोर्टल पर ‘आकांक्षी युवा’ कहकर उनके जज़्बातों को शब्द तो दे दिए गए हैं, मगर उन आकांक्षाओं को पूरा करने की कोई ठोस योजना दिखाई नहीं देती।
“आकांक्षी” कहलाने से पेट नहीं भरता
इंदौर के रवि शर्मा, जिन्होंने एम.ए. और फिर बी.एड. किया, बीते तीन वर्षों से नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं। कहते हैं, “हर जगह फॉर्म भरते हैं, फीस देते हैं, लेकिन या तो परीक्षा नहीं होती या परिणाम ही नहीं आता। आकांक्षी कहे जाने से अब चिढ़ होने लगी है। आकांक्षा तब तक ही अच्छी लगती है जब पूरी होने की उम्मीद हो।”
बैतूल की पूजा यादव ने एम.एससी. किया और अब घर में ट्यूशन पढ़ाकर गुज़ारा कर रही हैं। उनका कहना है, “सरकारी पोर्टल पर रिज्यूमे तो है, लेकिन कॉल एक भी नहीं आया। हर साल नौकरी मिलने की उम्मीद में अगला साल गंवा देती हूँ।”
बेरोजगारी से बढ़ती निराशा और पलायन
रोज़गार के अभाव में युवाओं में मानसिक तनाव, आर्थिक अस्थिरता और पलायन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। बड़े शहरों की ओर रोज़गार की तलाश में जा रहे युवाओं को वहाँ भी न्यूनतम वेतन पर काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। कई युवा डिलीवरी बॉय, कॉल सेंटर या अस्थायी नौकरियों में जीवन बिता रहे हैं — वह भी अपनी योग्यता से कई गुना नीचे।
क्या वादे सिर्फ जुमले बनकर रह जाएंगे?
प्रदेश सरकार समय-समय पर रोजगार मेले आयोजित करने की बात करती रही है, लेकिन इन मेलों में मिलने वाली नौकरियाँ अधिकतर निजी कंपनियों की होती हैं, जहाँ स्थायित्व और वेतन दोनों ही असुरक्षित हैं। सरकारी भर्तियों में देरी, पेपर लीक, आरक्षण विवाद और तकनीकी अड़चनें युवाओं के धैर्य की परीक्षा ले रही हैं।
मध्यप्रदेश के युवा आज जवाब मांग रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि शिक्षा के बाद उन्हें क्या मिला? क्या सरकार अपने वादों को निभाएगी या फिर अगला चुनाव भी केवल नए वादों का पुलिंदा लेकर आएगा?
ध्य प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है। राज्य के रोजगार पोर्टल पर 25,68,321 ‘आकांक्षी युवाओं’ ने रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें 13.91 लाख पुरुष और 11.76 लाख महिलाएं हैं। सबसे ज्यादा बेरोजगार युवा ओबीसी वर्ग के हैं। इनकी संख्या 10 लाख के पार है। इनमें 5.73 लाख पुरुष और 4.72 लाख महिलाएं शामिल हैं। अन्य वर्गों की बात करें तो 4.69 लाख युवा एससी वर्ग के हैं। 4.18 लाख युवा एसटी वर्ग के हैं। 6.34 लाख युवा सामान्य वर्ग के हैं। इससे पता चलता है कि ओबीसी युवाओं में बेरोजगारी सबसे ज्यादा है।
“आकांक्षी” कहकर छोड़ा नहीं जा सकता — उन्हें दिशा, अवसर और सम्मान देना होगा। नहीं तो यह मौन, एक दिन बहुत कुछ कहेगा।